
सोते मासूम को कोबरा ने डसा, समय पर अस्पताल पहुंचाया तो बची जान; डॉक्टर बोले—झाड़-फूंक कराते तो नहीं बचता बच्चा
भोपाल/रायसेन।
मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में एक 5 वर्षीय मासूम की जान उस वक्त खतरे में पड़ गई, जब वह रात में घर की जमीन पर सो रहा था। तड़के करीब 3 बजे उसे एक जहरीले कोबरा ने डस लिया। बच्चा जोर से रोया, तो परिजन की नींद खुली और उन्होंने पास में एक सांप को रेंगते देखा। घबराकर वे बच्चे को तुरंत रायसेन जिला अस्पताल ले गए, जहां से गंभीर हालत में उसे भोपाल के हमीदिया अस्पताल रेफर किया गया।
जब बच्चा सुबह 5 बजे हमीदिया अस्पताल की इमरजेंसी में पहुंचा, तब तक उसके पूरे शरीर में जहर फैल चुका था। आंखें बंद थीं, सांसें रुक-रुक कर चल रही थीं और हालत बेहद नाजुक थी। तत्काल पीडियाट्रिक विभाग की टीम को बुलाया गया, जिसने सात घंटे तक लगातार इलाज कर उसकी जान बचाई।

इस गंभीर स्थिति के बीच परिजनों का सही फैसला ही बच्चे की जान बचा सका। पीडियाट्रिक विभाग की एचओडी डॉ. मंजूषा गोयल ने दोपहर करीब 12 बजे परिजनों को बताया कि बच्चे की हालत में सुधार है, लेकिन अभी खतरा टला नहीं है। उन्होंने परिजनों की सराहना करते हुए कहा कि अगर वे झाड़-फूंक या देरी करते, तो बच्चा नहीं बच पाता।
इलाज के दौरान रायसेन में ही बच्चे को 10 वॉयल एंटी स्नेक वेनम दिया गया था। हमीदिया में भर्ती होने के बाद 30 और वॉयल दिए गए। बच्चे को वेंटिलेटर पर रखा गया और पांच दिनों तक लगातार एट्रोपिन, नियोस्टिगमीन, एंटीबायोटिक्स, फ्लूइड्स और सपोर्टिव दवाएं दी जाती रहीं। चौथे दिन से वह लिक्विड डाइट लेने लगा और गुरुवार को सामान्य खाना भी खा लिया।
इस पूरे उपचार में डॉ. मंजूषा गोयल, डॉ. शर्मिला रामटेके, डॉ. राजेश पाटिल, डॉ. अंकित दशोरे, डॉ. विष्णु प्रसाद और डॉ. पूनम समेत हमीदिया मेडिकल स्टाफ की सक्रिय भूमिका रही।
गंभीर बात यह है कि हमीदिया अस्पताल में इस साल अब तक 43 सर्पदंश के मरीज पहुंचे हैं। इनमें से 30% की हालत बेहद गंभीर थी। डॉक्टरों के अनुसार, अधिकतर मरीज पहले झाड़-फूंक में समय गंवाते हैं और जब अस्पताल आते हैं, तब तक हालत बिगड़ चुकी होती है।
एम्स की एक स्टडी बताती है कि सर्पदंश से हुई 15 मौतों में से 11 लोग पहले झाड़-फूंक करवा चुके थे। इन सभी की मौत हो गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि सर्पदंश के मामलों में पहला और सही कदम मेडिकल इलाज ही होना चाहिए।
गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल की डीन डॉ. कविता एन. सिंह ने बताया कि सर्पदंश की स्थिति में मरीज को शांत और स्थिर रखें, किसी तरह की पट्टी या रस्सी न बांधें और बिना देरी के नजदीकी अस्पताल ले जाएं। जितनी जल्दी इलाज शुरू होगा, बचने की संभावना उतनी ही बढ़ेगी।
मध्यप्रदेश में हर साल सांप के काटने से औसतन 2500 से अधिक लोगों की मौत होती है। वर्ष 2020 से 2024 के बीच 10,700 से अधिक लोगों की जान सर्पदंश से गई और सरकार ने 427 करोड़ रुपये मुआवजा वितरित किया। यह आंकड़े बताते हैं कि यह समस्या कितनी गंभीर है।
रायसेन की यह घटना सबक है कि अंधविश्वास के बजाय समय पर लिया गया चिकित्सकीय निर्णय ही जान बचा सकता है। यह जागरूकता अब हर गांव, हर परिवार तक पहुंचाना जरूरी है।
- By Pradesh Express
- Edited By: Pradesh Express Editor
- Updated: Thu, 31 Jul 2025 02:59 PM (IST)