
बालाघाट में बाघ शिकार का मामला एनटीसीए तक पहुंचा, वनकर्मियों की मिलीभगत के आरोप, DFO पर भी उठे सवाल
बालाघाट, मध्यप्रदेश। बाघों के लिए प्रसिद्ध बालाघाट जिले में हाल ही में हुए बाघ शिकार के मामले ने प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक सनसनी फैला दी है। आरोप है कि इस शिकार की साजिश में वन विभाग के ही कुछ अधिकारी और कर्मचारी शामिल थे, जिन्होंने न केवल शिकार में मदद की, बल्कि बाघ के शव को नष्ट करने में भी भूमिका निभाई। यह मामला अब राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) और मध्यप्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक तक पहुंच गया है। वन्य जीव अधिकार कार्यकर्ता अजय दुबे ने इस पूरे प्रकरण की हाईलेवल जांच की मांग की है और कहा है कि यदि सही तरीके से जांच की जाए तो इससे पहले हुए बाघ शिकार के मामलों की भी सच्चाई सामने आ सकती है।
जानकारी के अनुसार, बालाघाट साउथ डिवीजन के सोनवानी वन क्षेत्र के कंपार्टमेंट नंबर 443 में एक बाघ का शिकार हुआ, जिसकी सूचना 27 जुलाई से ही स्थानीय लोगों के बीच फैल गई थी। लेकिन इस गंभीर मामले की सूचना होने के बावजूद वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी निष्क्रिय बने रहे। कहा जा रहा है कि इस पूरे प्रकरण में DFO अधर गुप्ता की भूमिका संदिग्ध है। आरोप है कि वह न तो ऑफिस में रहते हैं और न ही फील्ड में सक्रियता दिखाते हैं। उनके नियंत्रण की कमी के कारण न केवल सुरक्षा व्यवस्था कमजोर हुई, बल्कि वन कर्मचारियों ने ही शिकार में सहयोग किया और शव को नष्ट कर दिया।
इतना ही नहीं, शिकायती पत्र में यह भी बताया गया है कि प्रस्तावित सोनेवानी कंजर्वेशन रिजर्व में लगभग 60 से अधिक बाघों की मौजूदगी है, लेकिन इस संवेदनशील क्षेत्र में खुफिया निगरानी तंत्र तक विकसित नहीं किया गया। अजय दुबे ने यह भी बताया कि ऑनलाइन ट्रांजिट पास (TP) प्रक्रिया लंबित पड़ी है और बांस के ट्रांसपोर्ट करने वाले वाहन बालाघाट में रुके हुए हैं, जिससे वन विभाग की लापरवाही उजागर होती है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस मामले में आरोपी डिप्टी रेंजर और वनरक्षक 4 अगस्त को कोर्ट में पेश हुए और फिर फरार हो गए, लेकिन उनके खिलाफ अभी तक कोई वन्य प्राणी अपराध का मामला दर्ज नहीं हुआ है। वहीं दूसरी ओर, इस पूरे प्रकरण में आदिवासी समाज के 6 चौकीदारों को आरोपी बनाकर गिरफ्तार कर लिया गया है, जिससे स्थानीय समुदाय में भारी रोष व्याप्त है। लोग इसे पक्षपातपूर्ण कार्रवाई मान रहे हैं।
इस मामले में कुछ माह पहले महाराष्ट्र में पकड़े गए पारदी गिरोह की संभावित भूमिका की भी जांच की मांग की गई है। अजय दुबे ने सुझाव दिया है कि स्थानीय कर्मचारियों को हटाकर एक नई और निष्पक्ष टीम गठित की जाए, जो इस घटना और पूर्व में हुए बाघों के गायब होने या शिकार के मामलों की तह तक पहुंचे। साथ ही उन्होंने वन्य प्राणी मुख्यालय से मांग की है कि पूरे प्रदेश में विभाग की कार्यप्रणाली की समीक्षा की जाए, ताकि फील्ड स्तर पर जिम्मेदार और पारदर्शी कार्य संस्कृति विकसित हो।
बालाघाट के इस गंभीर मामले ने वन विभाग की कार्यप्रणाली और जवाबदेही पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह होगा कि क्या राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और राज्य सरकार इस मामले में निष्पक्ष जांच कराकर दोषियों को सजा दिलवा पाती है या यह मामला भी कागज़ों में ही दबकर रह जाएगा।
- By Pradesh Express
- Edited By: Pradesh Express Editor
- Updated: Thu, 07 Aug 2025 01:19 PM (IST)