23 November 2025
सुप्रीम कोर्ट ने मप्र सरकार से पूछा – ओबीसी के 13% होल्ड पदों पर छह साल में क्या किया? अंतिम सुनवाई 22 सितंबर को

सुप्रीम कोर्ट ने मप्र सरकार से पूछा – ओबीसी के 13% होल्ड पदों पर छह साल में क्या किया? अंतिम सुनवाई 22 सितंबर को

नई दिल्ली/भोपाल — मध्यप्रदेश में सरकारी भर्तियों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के 13% पदों को होल्ड पर रखने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार पर सख्त रुख अपनाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान तीखी टिप्पणी करते हुए पूछा कि “क्या आप सो रहे हैं? पिछले छह वर्षों में इस संबंध में आपने क्या किया?” अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे 22 सितंबर को होने वाली सुनवाई के लिए टॉप ऑफ द बोर्ड यानी सूची में सबसे पहले स्थान पर रखने का आदेश दिया है।

यह मामला तब शुरू हुआ, जब ओबीसी महासभा के वकील वरुण ठाकुर की ओर से उन अभ्यर्थियों की याचिका दाखिल की गई जो मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) की परीक्षा में चयनित होने के बावजूद नियुक्ति से वंचित हैं। इन अभ्यर्थियों का आरोप है कि राज्य सरकार ने 29 सितंबर 2022 को एक नोटिफिकेशन जारी कर भर्तियों में 27% ओबीसी आरक्षण का प्रावधान तो किया, लेकिन कुल आरक्षण में से 13% पदों को छह वर्षों से होल्ड पर रखा हुआ है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कार्रवाई न केवल उनके करियर के साथ अन्याय है, बल्कि कानून के उस प्रावधान का भी उल्लंघन है जिसके तहत उन्हें आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने एमपीपीएससी के चयनित अभ्यर्थियों की ओर से तर्क रखे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि “आप बार-बार कहते हैं कि ओबीसी को 27% आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन जब सुनवाई का समय आता है तो आपके वकील देर से पहुंचते हैं और मामले में प्रगति नहीं होती। जब आपको कोई रोक नहीं रहा है, तो खुद क्यों नहीं कार्रवाई करते?” अदालत की इस टिप्पणी से स्पष्ट था कि वह राज्य सरकार की लापरवाही से नाखुश है।

गौरतलब है कि 4 मई 2022 को मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने अपने एक अंतरिम आदेश में ओबीसी आरक्षण की सीमा घटाकर 14% कर दी थी। राज्य सरकार इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची। इस बीच, छत्तीसगढ़ में 58% आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट द्वारा मान्यता दिए जाने के बाद मप्र सरकार ने भी अपने मामले में राहत की मांग की, ताकि होल्ड पर रखी गई भर्तियों की प्रक्रिया को पूरा किया जा सके।

राज्य सरकार का कहना है कि वह चाहती है कि ओबीसी को पूरा 27% आरक्षण मिले और 13% होल्ड पदों पर तुरंत नियुक्तियां की जाएं। वहीं, अनारक्षित वर्ग का पक्ष है कि आरक्षण की कुल सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए, जबकि ओबीसी संगठनों का तर्क है कि परीक्षा और चयन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, इसलिए नियुक्ति में देरी अनुचित और असंवैधानिक है। वर्तमान में प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार, मध्यप्रदेश में एसटी को 20%, एससी को 16%, ओबीसी को 27% और ईडब्ल्यूएस को 10% आरक्षण देने का प्रावधान है, जिससे कुल आरक्षण 73% हो जाता है। यही आंकड़ा इस विवाद का मूल कारण है।

अब 22 सितंबर को इस मामले की अंतिम सुनवाई होगी, और यदि सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा देता है, तो मध्यप्रदेश में ओबीसी को 27% आरक्षण लागू हो जाएगा। इससे लंबे समय से अटकी हुई भर्तियों का रास्ता साफ हो सकता है और हजारों अभ्यर्थियों को नियुक्ति मिल सकेगी। अभी तक इस मुद्दे से जुड़ी 70 से अधिक याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित हो चुकी हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि मामला केवल कानूनी बहस का नहीं, बल्कि हजारों युवाओं के भविष्य का भी है।