09 October 2025
स्वास्थ्य और शिक्षा आम लोगों की पहुंच से बाहर, व्यावसायिक हो गईं ये सेवाएं: मोहन भागवत

स्वास्थ्य और शिक्षा आम लोगों की पहुंच से बाहर, व्यावसायिक हो गईं ये सेवाएं: मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने रविवार को इंदौर में स्वास्थ्य और शिक्षा के बढ़ते खर्च पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि देश में ये दोनों ही सेवाएं अब आम लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं, क्योंकि इन्हें सेवा भाव से हटाकर पूरी तरह से व्यावसायिक बना दिया गया है।

भागवत माधव सृष्टि कैंसर केयर सेंटर के शुभारंभ अवसर पर बोल रहे थे। उन्होंने सेंटर की इमारत और आधुनिक चिकित्सा संसाधनों का निरीक्षण किया, साथ ही जीवन यात्रा पर आधारित प्रदर्शनी भी देखी। उन्होंने इंदौर के कार्यकर्ताओं को बधाई दी कि उन्होंने संकल्प लेकर इस सेंटर को स्थापित किया, जिसे निरंतर और सेवा भाव से चलाना होगा।

स्वास्थ्य और शिक्षा पर गंभीर टिप्पणी
अपने संबोधन में मोहन भागवत ने कहा, “स्वास्थ्य और शिक्षा आज समाज की सबसे बड़ी आवश्यकता हैं, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि ये सामान्य व्यक्ति की आर्थिक पहुंच से बाहर हो गई हैं। पहले ये सेवाएं सेवा भावना से जुड़ी होती थीं, लेकिन आज इन पर व्यावसायिकता हावी है।”

उन्होंने कहा कि चिकित्सा व्यवसाय अब ट्रिलियन डॉलर का उद्योग बन चुका है। देश में कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का बेहतर इलाज केवल 10–12 शहरों में ही उपलब्ध है, जिससे मरीजों को दूर-दराज के क्षेत्रों में जाना पड़ता है। इससे न केवल आर्थिक बोझ बढ़ता है, बल्कि परिवार पर मानसिक दबाव भी आता है। भागवत ने कहा कि अधिक अस्पताल और बेहतर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराकर ही इलाज को सस्ता और सुलभ बनाया जा सकता है।

सेवा भाव से प्रेरित शिक्षा और चिकित्सा के उदाहरण
डॉ. भागवत ने अपने बचपन का एक किस्सा सुनाया जब मलेरिया के कारण वे तीन दिन स्कूल नहीं जा पाए। उस समय उनके सरकारी स्कूल के शिक्षक स्वयं घर आए, उनकी स्थिति देखी और अगले दिन जंगल से औषधीय जड़ी-बूटी लाकर इलाज कराया। “उन्हें इसका वेतन नहीं मिलता था, लेकिन तब शिक्षक का कर्तव्य था कि छात्र पढ़े और स्वस्थ रहे,” उन्होंने कहा।

इसी तरह, उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में सेवा भाव का उदाहरण देते हुए बताया कि पहले डॉक्टर बिना बुलाए मरीज के घर जाते थे, तब तक देखभाल करते थे जब तक मरीज पूरी तरह स्वस्थ न हो जाए. उन्होंने एक भावुक प्रसंग भी साझा किया—एक कैंसर मरीज के मित्र ने उसकी पढ़ाई, शादी और कर्ज का खर्च जानने के बाद तुरंत 10 लाख रुपये का चेक दे दिया। “उस मदद ने मरीज में इतना आत्मबल भर दिया कि वह बीमारी से उबर गया और आज भी जीवित है,” भागवत ने बताया।

भारतीय समाज और संस्कृति पर खतरे की चेतावनी
डॉ. भागवत ने अपने भाषण में कहा कि भारत में धर्म और राष्ट्र एक ही हैं, और इसके लिए किया गया कार्य ईश्वरीय कार्य माना जाता है। उन्होंने चेतावनी दी कि कुछ अंतरराष्ट्रीय कॉरपोरेट घराने भारत की परिवार व्यवस्था और सांस्कृतिक मूल्यों को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि भारतीय बाजार पर कब्जा किया जा सके। उन्होंने कहा कि मनुष्य को केवल उपभोग की वस्तु मानने वाला विचार यूरोप को बर्बाद कर चुका है, और अब यही विचार भारत में भी फैलाने की कोशिश की जा रही है। इसके खिलाफ समाज को सजग रहना होगा।

एकता और सहयोग का संदेश
भागवत ने स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी विवेकानंद का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने जात-पात से ऊपर उठकर समाज में राष्ट्रभाव जाग्रत किया। उन्होंने सभी जाति-बिरादरी के प्रमुखों से स्थानीय स्तर पर बैठक कर कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए मिलकर काम करने की अपील की।उन्होंने कहा, “हम हिंदू हैं, और हर हिंदू का सुख-दुख हमारा सुख-दुख है। राष्ट्र और हिंदू समाज के प्रश्नों का समाधान मिलकर करें।”