09 October 2025
एमवाय अस्पताल में गर्भनाल से हो रहा आंखों का इलाज: झुलसी और जख्मी आंखों की रोशनी लौट रही, प्राइवेट में 70 हजार का इलाज यहां मिल रहा मात्र रु 250

एमवाय अस्पताल में गर्भनाल से हो रहा आंखों का इलाज: झुलसी और जख्मी आंखों की रोशनी लौट रही, प्राइवेट में 70 हजार का इलाज यहां मिल रहा मात्र रु 250

इंदौर – हादसों में जख्मी या केमिकल से झुलसी आंखों के इलाज में इंदौर का एमवाय अस्पताल देशभर में मिसाल बन रहा है। यहां मरीजों की आंखों की रोशनी गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी के बाद निकलने वाली गर्भनाल (प्लेसेंटा) की झिल्ली से लौटाई जा रही है। इस तकनीक को एमिनियोटिक मेमब्रेन ग्राफ्टिंग कहा जाता है।

अस्पताल के नेत्र रोग विभाग में यह प्रक्रिया हर महीने 80 से ज्यादा मरीजों पर की जा रही है, जिनमें से अधिकांश को सफल राहत मिल रही है। खास बात यह है कि जहां प्राइवेट अस्पतालों में इस प्रक्रिया की लागत 35 हजार से 70 हजार रुपए तक होती है, वहीं एमवाय अस्पताल में यह आयुष्मान योजना के तहत पूरी तरह मुफ्त की जा रही है। और जिनके पास आयुष्मान कार्ड नहीं है, उन्हें मात्र 250 रुपए खर्च करने होते हैं।

कैसे होती है इलाज की प्रक्रिया?

डिलीवरी के बाद नवजात के साथ बाहर आने वाली प्लेसेंटा की झिल्ली को संरक्षित कर लिया जाता है। इसके बाद उसकी एक पतली परत को निकालकर मरीज की आंख की ऊपरी सतह पर लगाया जाता है। यह झिल्ली आंखों की सतह को नई कोशिकाएं प्रदान करती है, जिससे घाव भरते हैं और रोशनी लौटती है।

किन मामलों में हो रहा उपयोग?

  • केमिकल से झुलसी आंखें
  • आंखों पर गहरे घाव
  • संक्रमण या चोट
  • ऑप्टिकल बर्न केस

इस प्रक्रिया से कई गंभीर रूप से घायल मरीजों की आंखें बचाई जा चुकी हैं। डॉक्टरों के अनुसार, प्लेसेंटा गर्भ में शिशु को पोषण देने का माध्यम होती है। यही शक्ति बाहर निकलने के बाद भी आंखों की कोशिकाओं के लिए वरदान बन रही है।

स्टेम सेल से भी हो रहा इलाज

जिन मरीजों को एमिनियोटिक मेमब्रेन ग्राफ्टिंग से राहत नहीं मिलती, उन्हें सिंपल लिम्बल एपिथेलियल ट्रांसप्लांटेशन तकनीक से ट्रीट किया जाता है। इसमें मरीज की एक स्वस्थ आंख से स्टेम सेल निकालकर दूसरी घायल आंख में लगाया जाता है। इससे कई मामलों में कॉर्निया ट्रांसप्लांट की जरूरत नहीं पड़ती।

दर्दनाक हादसे की मिसाल: पत्नी ने फेंका एसिड, एमवायएच ने लौटाई रोशनी

इंदौर के एक मरीज ने दैनिक भास्कर से बातचीत में बताया कि आठ माह पहले घरेलू विवाद के दौरान उसकी पत्नी ने उस पर एसिड फेंक दिया था। इस घटना में उसकी पीठ बुरी तरह झुलस गई थी और दोनों आंखों से दिखना पूरी तरह बंद हो गया था।

गरीब होने के कारण वह प्राइवेट अस्पताल नहीं जा सका और एमवायएच पहुंचा। यहां करीब एक माह तक वह भर्ती रहा और डॉक्टरों ने पांच अलग-अलग चरणों में उसकी आंखों का इलाज गर्भनाल की झिल्ली से किया। अब उसकी आंखों की रोशनी काफी हद तक लौट आई है और वह ठीक हो रहा है। संक्रमण से बचाव के लिए अभी चश्मा लगाना पड़ रहा है और रेगुलर आई ड्रॉप्स इस्तेमाल करनी पड़ रही हैं।