09 October 2025
रावतपुरा सरकार भ्रष्टाचार मामले में सीबीआई की बड़ी कार्रवाई, इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन और यूजीसी के पूर्व चेयरमैन डीपी सिंह आरोपी

रावतपुरा सरकार भ्रष्टाचार मामले में सीबीआई की बड़ी कार्रवाई, इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन और यूजीसी के पूर्व चेयरमैन डीपी सिंह आरोपी

इंदौर। मेडिकल कॉलेजों को फर्जी तरीके से मान्यता दिलाने और रिन्यू कराने के मामले में सीबीआई ने इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन सुरेश भदौरिया और यूजीसी के पूर्व चेयरमैन एवं डीएवीवी के पूर्व कुलपति डीपी सिंह को आरोपी बनाया है। सीबीआई ने एफआईआर में उल्लेख किया है कि भदौरिया मेडिकल कॉलेजों को एनएमसी से मान्यता दिलवाने के लिए मोटी रकम की दलाली कर रहा था। इसके लिए वह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में गहरी पैठ बनाकर गोपनीय सूचनाएं प्राप्त करता था।

सीबीआई ने इस मामले में रावतपुरा सरकार उर्फ रविशंकर महाराज समेत 35 नामजद लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का केस दर्ज किया है। मामले में डीपी सिंह का नाम सामने आने के बाद सियासी और शैक्षणिक हलकों में हलचल मच गई है। डीपी सिंह वर्तमान में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) के चांसलर हैं। अप्रैल 2024 में चांसलर बनने से पहले वे यूजीसी के चेयरमैन और इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं। आरोप है कि उन्होंने रावतपुरा सरकार मेडिकल कॉलेज को एनएमसी से पॉजिटिव रिपोर्ट दिलाने में मदद की थी।

सीबीआई की जांच में इंडेक्स मेडिकल कॉलेज में कई गड़बड़ियां सामने आई हैं।

मंत्रालय के अधिकारी से मिलती थी गोपनीय जानकारी

सीबीआई के अनुसार, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी चंदन कुमार एनएमसी निरीक्षण से जुड़ी गोपनीय जानकारियां सुरेश भदौरिया तक पहुंचाते थे, जिसमें निरीक्षण की तारीख, निरीक्षक दल के सदस्य और उनके दौरे की जानकारी शामिल थी। 30 जून को केस दर्ज होते ही भदौरिया अंडरग्राउंड हो गया है।

40 से अधिक कॉलेज जांच के घेरे में

सीबीआई की जांच रावतपुरा सरकार मेडिकल कॉलेज से शुरू हुई थी, जिसके बाद पूरे देश में फैले कॉलेजों के फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ। जांच में पता चला कि 40 से अधिक कॉलेज इस रैकेट में शामिल हैं। एफआईआर में भदौरिया को 25वें नंबर पर आरोपी बनाया गया है।

3 से 5 करोड़ में दिलवाते थे फर्जी मान्यता

जांच में सामने आया कि भदौरिया कॉलेज संचालकों से 3 से 5 करोड़ रुपए लेकर मान्यता दिलवाने का काम करता था, चाहे कॉलेज एनएमसी के मानकों पर खरे न उतरते हों। एनएमसी निरीक्षण के दौरान अस्थायी डॉक्टरों को स्थायी फैकल्टी दिखाने के लिए बायोमेट्रिक सिस्टम में फर्जी फिंगरप्रिंट क्लोन कर उपस्थिति दर्ज कराई जाती थी।

सीबीआई मामले की गहन जांच कर रही है और जल्द ही इस मामले में और गिरफ्तारियां हो सकती हैं।